वांछित मन्त्र चुनें

यद्ध॒ स्या त॑ इन्द्र श्रु॒ष्टिरस्ति॒ यया॑ ब॒भूथ॑ जरि॒तृभ्य॑ ऊ॒ती। मा न॒: कामं॑ म॒हय॑न्त॒मा ध॒ग्विश्वा॑ ते अश्यां॒ पर्याप॑ आ॒योः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad dha syā ta indra śruṣṭir asti yayā babhūtha jaritṛbhya ūtī | mā naḥ kāmam mahayantam ā dhag viśvā te aśyām pary āpa āyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। ह॒। स्या। ते॒। इ॒न्द्र॒। श्रु॒ष्टिः। अस्ति॑। यया॑। ब॒भूथ॑। ज॒रि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒ती। मा। नः॒। काम॑म्। म॒हय॑न्तम्। आ। ध॒क्। विश्वा॑। ते॒। अ॒श्या॒म्। परि॑। आपः॑। आ॒योः ॥ १.१७८.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:178» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब एकसौ अठहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है। उसमें आरम्भ से सेनापति के गुणों का वर्णन करते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सेनापति ! (यत्) जो (स्या) यह (ते) आपकी (श्रुष्टिः) सुनने योग्य विद्या (अस्ति) है (यया) जिससे आप (जरितृभ्यः) समस्त विद्या की स्तुति करनेवालों के लिये उपदेश करनेवाले (बभूथ) होते हैं उस (ऊती) रक्षा आदि कर्म से युक्त विद्या से (नः) हमारे (महयन्तम्) सत्कार प्रशंसा करने योग्य (कामम्) काम को (मा, आ, धक्) मत जलाओ (ते) आपके (ह) ही (आयोः) जीवन के जो (आपः) प्राण बल हैं उन (विश्वा) सभों को (पर्यश्याम्) सब ओर से प्राप्त होऊँ ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापति आदि राजपुरुष अपने प्रयोजन के लिये किसीके काम को न विनाशें, सदैव पढ़ाने और पढ़नेवालों की रक्षा करें, जिससे बहुत बलवान् आयुयुक्त जन हों ॥ १ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सेनापतिगुणानाह।

अन्वय:

हे इन्द्र यद्या स्या ते श्रुष्टिरस्ति यया त्वं जरितृभ्य उपदेष्टा बभूथ तयोती नो महयन्तं कामं मा धक्। ते हायोः या आपस्ताः विश्वापर्यश्याम् ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) या (ह) किल (स्या) असौ (ते) तव (इन्द्र) सेनेश (श्रुष्टिः) श्रोतव्या विद्या (अस्ति) (यया) (बभूथ) भवसि (जरितृभ्यः) सकलविद्यास्तावकेभ्यः (ऊती) ऊत्या रक्षणादिकर्मयुक्तया (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (कामम्) (महयन्तम्) सत्कर्त्तव्यम् (आ) समन्तात् (धक्) दहेः (विश्वा) सर्वाणि (ते) तव (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (परि) सर्वतः (आपः) प्राणबलानि (आयोः) जीवनस्य ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापत्यादयो राजपुरुषाः स्वप्रयोजनाय कस्यापि कार्य्यं न विनाशयेयुः। सदाऽध्यापकाऽध्येतॄणां रक्षां कुर्युः। यतो बलिष्ठा दीर्घायुषो जनाः स्युः ॥ १ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सेनापतीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - सेनापती इत्यादी राजपुरुषांनी आपल्या प्रयोजनासाठी कुणाच्याही कार्याचा नाश करू नये. सदैव अध्यापक व अध्येता यांचे रक्षण करावे, ज्यामुळे अत्यंत बलवान व आयुष्यमान लोक व्हावेत. ॥ १ ॥